Saturday, May 26, 2012

प्रशंसा जरूर कीजिए, मगर...

एक कक्षा में रजत नाम के चार विद्यार्थी थे। उनमें से तीन रजत तो पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छे थे, मगर एक रजत कमजोर था। पढ़ने-लिखने की बजाय वह शरारतों में ही अपना सारा समय निकाल देता। एक दिन उसके अध्यापक कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें शरारती रजत के पिता मिले। रजत के पिता ने अध्यापक से अपने बेटे की पढ़ाई के बारे में पूछा। अध्यापक उन्हें ठीक से पहचान नहीं पाए कि वो कौन से रजत के पिता हैं। उन्होंने उसे दूसरे रजत का पिता समझा जो कक्षा में सबसे अच्छा था और कहा कि रजत तो कक्षा में सबसे अच्छा लड़का है। उसकी पढ़ाई ठीक चल रही है। घर आकर शरारती रजत के पिता ने जब यह बात रजत को बताई तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ।

अगले दिन रजत जब स्कूल गया तो उसने अपने अध्यापक से
पूछा- सर, क्या कल आपने मेरे पिताजी से कहा था कि मैं एक अच्छा लड़का हूं और मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है? अध्यापक को अपनी भूल का पता चला, लेकिन उन्होंने कहा- हां, तुम एक अच्छे लड़के हो और तुम्हारी पढ़ाई भी ठीक चल रही है।

वह एक अच्छा लड़का है और उसकी पढ़ाई भी ठीक चल रही है, यह सुनकर पहले तो खुद रजत को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर वह अनोखी खुशी से भर गया। बार-बार उसके भीतर से यह आवाज आने लगी, वह एक अच्छा लड़का है और उसकी पढ़ाई भी ठीक चल रही है। रजत का आत्मविश्वास लौटने लगा। उसने उसी क्षण से शरारत छोड़ दी और वह उस बात को वास्तविकता में बदलने के लिए जोर-शोर से पढ़ाई में जुट गया। उस साल वार्षिक परीक्षा में वह बहुत अच्छे अंकों से पास हुआ। रजत सचमुच एक अच्छा विद्यार्थी बन चुका था। यह हुआ अध्यापक द्वारा उसकी प्रशंसा किए जाने पर।

अच्छे विद्यार्थी अपने माता-पिता और अध्यापकों के विश्वास को कभी नहीं तोड़ते। इसलिए अपने बच्चों और विद्यार्थियों की प्रशंसा करें। यह प्रशंसा उन्हें आगे बढ़ने में मदद करती है। प्रशंसा करना और प्रशंसा पाना, दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। आलोचना करना सरल है, पर प्रशंसा करना थोड़ा कठिन। प्रशंसा वही कर सकता है, जो सकारात्मक दृष्टिकोण रखता हो।

प्रशंसा उस धूप के समान है जो सीलन, नमी और फफूंदी को दूर कर देती है। प्रशंसा संगीत है, एक कला है। जिसने इस कला को सीख लिया, उसने अपना और दूसरों का दृष्टिकोण संवार दिया। यह सकारात्मक दृष्टिकोण ही तो है जो हमें हर प्रकार की सफलता दिलवाने में सहायक होता है। इसलिए सफलता पाने के लिए प्रशंसा करना सीखें।

लेकिन ध्यान रखें, प्रशंसा का मतलब चापलूसी हर्गिज नहीं है। एक चापलूस व्यक्ति न स्वयं आगे बढ़ता है और न वह व्यक्ति जिसे चापलूसी पसंद होती है। कई बार किसी से काम निकलवाने या काम ठीक से करवाने के लिए हम कुछ प्रलोभन अथवा पुरस्कार भी देते हैं। लेकिन इसका प्रभाव कभी स्थायी नहीं होता। लेकिन ईमानदार प्रशंसा का प्रभाव स्थायी होता है। प्रशंसा सबसे बड़ा प्रलोभन अथवा पुरस्कार है। सात्विक भाव से की गई गलत प्रशंसा का भी अच्छा ही प्रभाव पड़ता है। लेकिन जहां तक हो सके, प्रशंसा करने में ईमानदार रहें।

जो कर सकते हैं लेकिन कुछ नहीं करते, उन्हें कर्मशील बनाने के लिए तो प्रशंसा और भी जरूरी है। ईमानदारी से की गई प्रशंसा स्वीकार्य बनाती है। प्रशंसित व्यक्ति में कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा हो जाता है, क्योंकि गलत काम के लिए तो कोई किसी की प्रशंसा नहीं करता। प्रशंसा व्यक्ति की हो अथवा उसके काम की, प्रशंसा वास्तव में काम की ही होती है। इसलिए प्रशंसित व्यक्ति जो कुछ भी करेगा अच्छा ही करेगा।

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विकास

विकास जहां होता है, वहां लोग भाग्यशाली होते हैं। आपकी आप जानें मगर हम तो इस मायने में जरूरत से ज्यादा भाग्यशाली हैं। हमें विकास की राह नहीं देखना पड़ती है। विकास हमारे आगे-आगे चलता है। एक काम हुआ नहीं कि दूसरा शुरू हो जाता है। विकास के लिए विकास होना आवश्यक है। हमारे यहां तो विकास निरंतर दौड़ रहा है। हमारे यहां विकास के प्रति जनप्रतिनिधि इतने सजग हैं कि हर काम फुर्ती से करवाते हैं। करवाते ही नहीं उसकी निरंतर निगरानी भी करते हैं। विकास की व्यवस्था को समझने वाले जिस तरह हमारे यहां हैं वैसे सभी दूर होना चाहिए।

अब देखिए कितनी ऊंची सोच है हमारे जनप्रतिनिधियों की। पहले सड़क बनवाते हैं और उसके बाद पाइप लाइन डालने का कार्य करवाते हैं। जब पाइप लाइन डलती है तो सड़क पूरी खुद जाती है, लिहाजा सड़क फिर से बनाई जाती है। सड़क बन गई तो अब केबल डालने का कार्य होता है इसमें सड़क फिर खुद जाती है। सड़क तीसरी बार बनाई जाती है। सड़क बनी और फिर योजना बन जाती है सीवर व्यवस्था को मजबूत करने की। तो फिर से सड़क खुदती है और बनती हैं। अगर आपको हमारी बात पर विश्वास हो तो इसे सच मानें कि हमारे यहां की सड़कें एक साल में चार बार बन चुकी है और अभी भी बन रही है। ऎसा आपके यहां भी हो रहा होगा यानी आप भी कम भाग्यशाली नहीं हैं। दरअसल विकास की अवधारणा भी यही होती है। निरंतर विकास कार्य होते रहें यह आवश्यक है।

विकास के कार्य निरंतर होने से ही जनप्रतिनिधियों का विकास हो पाता है। कोई अपने क्षेत्र में सीमेन्ट की सड़कें बनवा दें तो अगला प्रतिनिधि उसे उखड़वा सकता है क्योंकि वह सीमेंटेड सड़को की बजाए डामर की सड़कों का पक्षधर होता है। डामर की सड़कें होंगी तो वर्षभर मरम्मत कार्य चलता रहेगा। विकास के पाठ का एक बिन्दु यह भी है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मूल निर्माण कार्य से अधिक "स्कोप" मरम्मत कार्य में होता है। तालाब बनाना हो तो फटाफट बन जाए मगर तालाब की एक पाल की मरम्मत करना हो तो महीनों लग जाएं। यानी मरम्मत का कार्य पूर्ण गंभीरता से करना होता है। मरम्मत के कार्य में खरपतवार का हस्तक्षेप भी नहीं हो पाता है। खरपतवार वही जो किसी भी फसल के साथ जबरन उगकर मूल फसल की वृद्धि में रूकावट पैदा करती है। विकास के कार्य में भी ऎसी खरपतवार पैदा हो ही जाती है।

कोई कार्य स्वीकृत हुआ नहीं कि अपना कमीशन पाने की जुगाड़ में ये खरपतवारनुमा व्यक्ति लार टपकाते पहुंच ही जाते हैं। हर किसी को कमीशन देते-देते ठेकेदार के मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वह सोचने लगता है कि मेहनत मैं करूं और खिलाऊं इन्हें? यानी वह इस खरपतवार से परेशान हो जाता है।

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