Friday, May 25, 2012

यह कैसा पढ़ाई का दबाव


गुना। स्कूल टीचर और परिवार के सदस्यों का बच्चों पर पढ़ाई का बढ़ता दबाव अब घर से भागने की वजह के रूप में सामने आया है। एक साल में ऎसे एक सैकड़ा से अधिक मामले सामने आए हैं। इनमें बीस फीसदी बच्चों ने घूमने का शौक पूरा करने घर छोड़ा, तो लड़कियों के घर छोड़ने की वजह परिजनों द्वारा पढ़ाई छुड़ाना और समय से पहले शादी का बढ़ता दबाव रहा। घर छोड़ने के बाद कई बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं। इस सच्चाई का खुलासा विशेष किशोर पुलिस इकाई के आंकड़े करते हैं।


एक साल के आंकड़ों पर गौर करें, तो जिले व अन्य शहरों से 160 बच्चे घर से भागे, जिन्हें पुलिस इकाई ने काउंसलिंग के बाद परिजनों को सौंपा। इनमें दस से 14 वर्ष तक के करीब एक सैकड़ा से अधिक बच्चे ऎसे पाए गए, जिन्होंने घर में बढ़ते पढ़ाई के दबाव में घर छोड़ दिया। ऎसे बच्चों से घर छोड़ने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि घर और स्कूल में अक्सर पढ़ाई पर जोर दिया जाता था। इससे घर से भागना ही मुनासिब समझा। वहीं लड़कियों के मामले में स्थिति पूरी तरह उलट है। इसमें घर छोड़ने की वजह परिजनों द्वारा पढ़ाई छुड़ाने और उम्र से पहले शादी का दबाव रहा।

विशेष किशोर पुलिस इकाई में ऎसी लड़कियों की संख्या करीब एक दर्जन है।

फैक्ट फाइल


घर से भागने वाले बच्चों में अशोकनगर जिले के बच्चे अधिक
बीस फीसदी बच्चों ने ट्रेन में घूमने छोड़ दिया घर
पचास प्रतिशत बच्चे नहीं सह पाए पढ़ाई का दबाव
तीस फीसदी बच्चे घर छोड़ने के बाद नशे का शिकार
छह लावारिस बच्चों को उज्ौन के बालगृह में भेजा गया

लावारिस बच्चों का होगा सर्वे


जिले में लावारिस बच्चों की पहचान करने अब महिला बाल विकास विभाग सर्वे करेगा। विभाग के अधिकारी आरसी त्रिपाठी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र और शहरी परियोजनाओं में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ अन्य फील्ड वर्कर को सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। सड़कों और गली-मोहल्लों में आवारा घूमने वाले बच्चों की भी जानकारी जुटाई जाएगी, ताकि ऎसे बच्चों के पोषण और पुनर्वास का प्रबंध किया जा सके।


विशेष किशोर पुलिस इकाई द्वारा एक साल में घर से भागे 160 बच्चों को परिजनों के हवाले किया गया है। काउंसलिंग के दौरान सामने आया कि ज्यादातर लड़के पढ़ाई का दबाव नहीं झेल सके, तो कुछ ने गरीबी के कारण घर छोड़ा। कई लड़कियां ऎसी भी रहीं, जो परिजनों द्वारा पढ़ाई छुड़ाने और शादी के लिए मजबूर करने के कारण घर से भागीं। मंजू तिर्की, एसआई व इकाई प्रभारी गुना

"मैं पढ़ना चाहती थी"


बमोरी क्षेत्र से कुछ महीने पहले एक लड़की घर से भाग गई थी। इसके बाद पुलिस ने उसे लावारिस हालत में मिलने पर इकाई के हवाले किया। इकाई के सदस्य रामवीरसिंह कुशवाह ने बताया कि काउंसलिंग के दौरान लड़की ने बताया कि वह पढ़ना चाहती है, लेकिन परिजन पढ़ाई छुड़ाकर समय से पहले शादी कराना चाहते थे। इसी वजह से उसने परिवार से नाता तोड़ लिया। इकाई में वह लगभग सात दिन रही। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मंजूरी के बाद अब इकाई इस बच्ची को शिक्षित करेगी।

नशे से लड़कर संभाला परिवार


पिता की शराब की लत और मां के साथ अक्सर मारपीट ने अशोकनगर के 14 वर्षीय बालक को घर छोड़ने मजबूर कर दिया। तभी गलत लोगों की संगत ने उसे केमिकल नशे का आदी बना दिया। इस बीच पुलिस ने तीन बार बालक को बरामद कर किशोर इकाई के हवाले किया। लेकिन शराबी पिता के कारण वह घर से भागता रहा। इकाई के सदस्यों की मानें, तो उचित काउंसलिंग के बाद आज वह बालक गुना में रहकर न सिर्फ रोजगार से जुड़ा है।

बल्कि परिजनों को आर्थिक मदद कर सहारा बना हुआ है।

बच्चे को बनाया भिखारी
किशोर इकाई में वर्ष 2011 में बाल शोषण का मामला भी आया, जो कोर्ट में विचाराधीन है। सदस्यों के मुताबिक एक बच्चा घर से गायब हो गया था, जिसकी परिजनों से पुलिस में गुमशुदगी भी दर्ज कराई। इस बीच पुलिस को बच्चा सड़क पर भीख मांगता हुआ मिला। पूछताछ में बच्चे ने बताया कि डरा-धमकाकर उससे भीख मंगाई जा रही है। इसके बाद बच्चे को किशोर इकाई में भेजा गया, जहां से उसे काउंसलिंग के बाद परिजनों को सौंप दिया गया। किशोर इकाई के अनुसार मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है।

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डाक्टर ने इलाज के लिए मंगवाई "भीख"
 

चित्रकूट। गरीबी पत्थर से भी कठोर होती है, इसका जीता-जागता उदाहरण उस समय देखने को मिला जब उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के सरकारी अस्पताल के डज्ञक्टर ने एक गरीब बच्चे का इलाज अस्पताल में करने के बजाय उसे अपने घर पर फीस के साथ आने को कहा, मगर फीस का जुगाड़ न होने पर इस गरीब को बीमार बच्चे के साथ सरेआम सड़क पर "भीख" मांगनी पड़ी।

मामला कुछ यूं है कि गरीबी से तंगहाल रैपुरा थाना क्षेत्र के खजुरिहा गांव का बलवंता कर्ज लेकर गंभीर बीमारी से जूझ रहे अपने 10 साल के भतीजे राहुल को लेकर बुधवार को चित्रकूट के सरकारी अस्पताल में इस उम्मीद से पहुंचा कि यहां महज एक रूपए के पर्चे पर बच्चे का उपचार हो जाएगा। उसे क्या मालूम था कि सरकारी चिकित्सक भीख मांगने के लिए मजबूर कर देगा।

बलवंता ने अस्पताल में पर्चा तो बनवा लिया, मगर आपातकालीन सेवा में तैनात एक सरकारी चिकित्सक ने बच्चे को देखते ही सलाह दे दी कि इस बच्चे को गंभीर बीमारी है। अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, इसलिए वह फीस का इंतजाम कर आवास में आए।

मजबूर बलवंता क्या करता? उसने बीमार बच्चे के साथ जिला कचहरी से लगी सड़क में सरेआम "भीख" मांगना शुरू कर दिया। बलवंता ने बताया कि कई दिनों से उसका भतीजा राहुल किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है।

उसने बताया कि आर्थिक हालत इतनी कमजोर है कि सरकारी अस्पताल तक पहुंचने के लिए भी उसे गांव में कर्ज लेना पड़ा है। उसने बताया कि सरकारी अस्पताल के चिकित्सक ने अपने घर में इलाज के लिए बुलाया था, मगर उसके पास पैसे नहीं है कि वह डॉक्टर की फीस चुका पाए। इसलिए, भीख मांगना मजबूरी है।

इस मसले पर सरकारी अस्पताल चित्रकूट के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. देशराज सिंह ने बताया कि अस्पताल के बजाय घर में बुलाना शासन की मंशा के विपरीत है, मैं इस मामले की खुद जांच करूंगा और दोषी चिकित्सक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।

चित्रकूट के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. आर.डी. राम ने बताया कि उन्हें मीडिया के जरिए इस मामले की जानकारी मिली है। उप मुख्य चिकित्साधिकारी सदर को जांच सौंप दी गई है।

इस मामले से लोगों के इस आरोप पर मुहर लग गई है कि बलवंता जैसे तमाम गरीब रोजाना सरकारी चिकित्सकों की लापरवाही के शिकार हो रहे हैं और महज "कुछ" पाने की लालच में चिकित्सक अपने कर्तव्य को धता बता रहे हैं। इससे जहां सरकार की मंशा को ठेस पहुंचती है, वहीं मानवता भी तार-तार हो रही है।


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